जिस डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरी बार जीतकर आने के बाद उनके शपथ ग्रहण समारोह में न्यौता पाने के लिये भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उत्सुक थे और तत्काल बाद बगैर कोई खास अवसर के अमेरिका पहुंचकर उनसे मिल आये थे, उन्हीं ट्रम्प महाशय के खिलाफ अमेरिका की जनता सड़कों पर है। ये वे ही लोग हैं जिन्होंने उन्हें दूसरी बार दुनिया के सबसे ताकतवर देश की गद्दी सौंपी थी तथा इन्हीं के भरोसे ट्रम्प तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिये वहां के संविधान में संशोधन तक लाने की तैयारी कर रहे हैं। वहां के शनिवार (5 अप्रैल) को उनके खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन किया गया जो हाल के वर्षों का उस देश का सबसे बड़ा जन प्रदर्शन रहा। अमेरिकी नागरिक मानने लगे हैं कि उन्होंने ट्रम्प को चुनकर बड़ी गलती की है। मुख्य वजह है ट्रम्प की नीतियां जिनके बारे में वे कह रहे हैं कि इससे अमेरिका दुनिया भर में अपने सहयोगियों को खो रहा है। उनकी टैरिफ़ नीति के साथ सामाजिक सुरक्षा पर आसन्न खतरों को लेकर वे बेहद गुस्से में हैं।
दुनिया के सबसे अमीर एलन मस्क भी जनता के निशाने पर आ गये हैं जिन्होंने ट्रम्प के प्रचार अभियान को तो सम्हाला ही था, ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद एक तरह से वे प्रशासन में खासमखास हैं। ट्रम्प ने उन्हें डीओजीई यानी सरकारी दक्षता विभाग का प्रमुख बना दिया है जो प्रशासन कर्मचारियों की बड़ी संख्या में कटौती करने का इरादा जाहिर कर चुके हैं। यह अलग बात है कि उन्होंने हाल ही में यह पद जल्दी छोड़ देने का ऐलान किया है। तो भी, ट्रम्प की नीतियों पर मस्क का कहा बहुत चलता है। वे पद छोड़ भी दें तो भी उनका प्रभाव बना रहेगा।
इस विशाल देश के सभी 50 राज्यों में 1400 से ज्यादा स्थानों पर ट्रम्प और एलन मस्क की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन हुए जिनमें हजारों की संख्या में अमेरिकी नागरिक 'हैंड्स ऑफ' (हमारे अधिकारों से दूर रहो) की तख्तियां लिये हुए थे जिन पर ट्रम्प व मस्क की तस्वीरें थीं। विरोध प्रदर्शनों में 150 से अधिक संगठनों ने भाग लिया। बताया गया है कि 6 लाख से ज्यादा लोगों ने प्रदर्शनकारियों के रूप में अपने नाम पंजीकृत कराये थे। इनमें सामान्य नागरिकों के अलावा मानवाधिकार व श्रम संगठन के सदस्य, समलैंगिकों के अधिकारों के समर्थक, राजनीतिक कार्यकर्ता आदि शामिल थे। यह प्रदर्शन पूर्णत: शांतिपूर्ण रहा। किसी की गिरफ्तारी की सूचना नहीं है। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी को मिली सफलता के बाद ट्रम्प को राष्ट्रपति का पद सम्हाले अभी तीन माह भी नहीं हुए हैं, पर उनके कामकाज के तरीकों ने पूरे अमेरिका को नाराज़ कर दिया है। उनके कामों का प्रतिकूल असर न सिर्फ देश के भीतर वरन विश्व भर में पड़ने की सम्भावना है। खासकर उनकी टैरिफ़ नीति से, जिसे ट्रम्प द्वारा दुनिया भर के खिलाफ छेड़ा गया 'टैरिफ़ वॉर' कहा जा रहा है, अमेरिका को बड़ा नुकसान होने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
अमेरिका में आप्रवासियों को जिस तरह से बाहर निकाला गया उससे भी लोगों में नाराज़गी है क्योंकि ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में भेदभाव की नीति अपना रहे हैं। उन्होंने अपने देश में क्रूर पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने की जो नीति अपनाई है वह उनके अपने लोगों को इसलिये नहीं भा रही है क्योंकि उससे बड़े पैमाने पर लोगों की नौकरियां जा सकती हैं और कल्याणकारी कार्यक्रमों के बजट में कटौतियां सम्भव हैं। इससे उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। आधे दशक से भी ज्यादा की अवधि में दुनिया भर में कई अनावश्यक निर्मित सैन्य मोर्चों पर, विशेषकर शीत युद्ध के दौरान अपने हजारों नागरिकों के प्राण गंवाने वाले अमेरिकियों को ट्रम्प की भड़काऊ व उकसाने वाली नीतियां रास नहीं आ रही हैं। कभी वे किसी देश पर जमकर बमबारी करने की धमकी देते हैं तो कभी अपने पड़ोसी देश मैक्सिको के साथ लगने वाली सीमा पर दीवार बनाने तथा उसी से खर्च वसूलने की बात करते हैं। कनाडा को अपने देश में मिलाने की उनकी इच्छा ने न केवल पड़ोसी देश को नाराज़ कर दिया है बल्कि उनके अपने नागरिक इसका विरोध कर रहे हैं
किसी और देश के राष्ट्राध्यक्ष द्वारा ऐसा करने की कोशिश या इच्छा जाहिर करने पर वहां के लोग उत्साहित हो सकते हैं परन्तु अमेरिकी नागरिकों का दृष्टिकोण अमूमन वैश्विक होता है जो सभी देशों की सम्प्रभुता में विश्वास और नागरिक अधिकारों का सम्मान करना बखूबी जानते हैं। उदाहरणार्थ, अमेरिकी सरकार चाहे इज़रायल के साथ खड़ी हो परन्तु वहां के नागरिक सामान्यत: फिलीस्तीन में हो रही तबाही को लेकर व्यथित हैं। आप्रवासियों को हथकड़ी-बेड़ियों में उनके देश लौटाना उन्हें नाखुश कर रहा है। हाल ही में ट्रम्प ने ऐलान किया है कि देश में नागरिकों की पहचान केवल दो ही लिंग से होगी- महिला व पुरुष। उन्होंने साफ किया कि थर्ड जेंडर को मान्यता नहीं दी जायेगी जो कि एलजीबीटीक्यू (समलैंगिकों) की आज़ादी के खिलाफ़ तो है ही, आधुनिक मान्यताओं के भी प्रतिकूल है। यह विचार अमेरिका जैसे आधुनिक सोच वाले देश को मध्य युग में जा खड़ा करता है।
अमेरिकी व भारतीय नागरिकों के व्यवहार में अंतर साफ दिखता है। यहां पूरा देश मोदी के सभी तरह के गैर-लोकतांत्रिक फैसलों को स्वीकार कर रहा है। जो थोड़े से लोग उनके जनविरोधी निर्णयों के खिलाफ़ कुछ कहें तो उन्हें देशद्रोही कहने और जेलों में डालने में सरकार देर नहीं करती। ऐसा प्रदर्शन भारत में अभी अकल्पनीय है। ऐसी सजगता और नागरिक बोध यदि भारत के लोगों में होता तो मोदी न तो तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते, न ही देश को बर्बाद करते हुए अगले सौ वर्षों तक भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार बने रहने का दावा कर सकते।